अनार के 14
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फायदे और नुकसान

दोस्तों हमारे देश में अनार के वृक्ष प्राय: देश के सभी प्रांतों में आसानी से पाएं जाते हैं। आजकल ईसकी खेती भी की जा रही हैं। और बाग बगीचों में तथा कयी लोग इसको अपने घर में भी लगाते हैं। अनार में प्रमुखता से तीन प्रकार पाएं जाते हैं। देशी, काबुली, और कंधारी। ईनके स्वाद भी अलग-अलग प्रकार के होते हैं। देशी अनार स्वाद में खट्टापन लिए हुए मीठे होते हैं। तों काबुली और कंधारी अनार का स्वाद मीठा होता हैं। काबुली अनार को सर्वोत्तम माना जाता हैं। अनार के वृक्ष के काफी सारे प्रयोग हमारे प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथों में बताएं गयें हैं। औषधीय रूप में ईसके पत्तें,छाल, और फलों का उपयोग किया जाता हैं।

इसके वृक्ष 10-15 फीट तक उंचे होते हैं।इसकी बाहरी छाल का रंग धुसर वर्ण का होता हैं। इसके पत्ते दो से तीन इंच तक लंबे और आधे इंच तक चौडे तथा दोनों सीरों पर पतले, आयात के आकार के होते हैं।इसपर अप्रैल से लेकर मई तक फुल आते हैं जीसका रंग केशरी-नारंगी तथा कभी कभी पिले रंग के भी पाएं जाते हैं। जो प्राय: एकल या गुच्छों में लगते हैं।  
इसके फल जुलाई से लेकर सितंबर तक आते हैं जो गोल आकार के जीनका व्यास दो इंच तक हो सकता हैं।इसका बाह्यभाग पिले-लाल रंग से युक्त होता हैं।फल का गूदा चर्मवत काष्ठिय होता हैं। फल के भीतरी भाग में अनेक पर्दे होते हैं।जीसमे अनेक छोटे छोटे बिज होते हैं। बिजों का आवरण गुलाबी रंग लिए हुए मांसल होता हैं।

विभिन्न नाम

बोटेनिकल नाम - Punica granatum
अंग्रेजी नाम - Pomegranate
संस्कृत नाम - दाडीम,दंत बिज
हिंदी नाम- अनार
मराठी नाम- डाळींब
अरबी नाम- रूमान

  गुणधर्म

आयुर्वेदानुसार अनार वात, पित्त और कफ का शमन करने वाला, कसैला,मल को बांधने वाला, स्निग्ध, मेध्य, बलवर्धक, ग्राही, दीपक, पाचक,तृष्णा को शांत करने वाला, मुखरोग नाशक, तथा ज्वर नाशक माना जाता हैं।

प्रचलित योग

दाडीमाष्टक चुर्ण, दाडीमावलेह आदी।

रोगानुसार उपयोग

दांत के रोग ( Dental ailments) - अनार के छाया में सुखाएं हुएं फुल और पत्तें बिस बिस ग्राम, गुलाब के छाया में सुखाएं हुएं फुल बिस ग्राम इन सबको पीसकर इसका चुर्ण बनाएं और इसको डिब्बे में रखें। इस चुर्ण का उपयोग दन्तमंजन के लिए सुबह-शाम करें तों इससे दांतों का सड़ना,हिलना, मसुढों में सुजन आना, मसुढों से मवाद और खून का आना, आदी सभी प्रकार के रोग ठीक होते हैं।
नकसीर ( Nose bleeding) - अगर किसी व्यक्ति को धुप में जाने के कारण या फिर किसी भी कारण से नाक से खून निकल रहा हैं तो अनार की कच्ची और कोमल कली का रस निकालकर इस रस की एक या दो बुंदे नाक में डालने से नाक से खून का आना बंद होता हैं।

बवासीर ( Piles) - अगर किसी व्यक्ति को बवासीर के मस्सों से ज्यादा मात्रा में खुन बहता है तो कंधारी अनार के फल के छिलकों को छाया में सुखाकर बारीक चूर्ण बनाएं इस चुर्ण को पांच पांच ग्राम की मात्रा में ताजे पानी के साथ सुबह शाम लेने से बवासीर के मस्सों से आने वाला खुन बंद होता हैं। अनार के ताजे पत्तों का रस दस मीली सुबह शाम मीश्ररी के साथ लेने से भी बवासीर में खून का आना ठीक होता हैं।
मुंह के छालें ( Mouth ulcers) - अनार के ताजे पत्ते दस ग्राम, को पचास ग्राम पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं और इसमें थोडी सी मीश्री मीलाकर इससे दिन में चार पांच बार कुल्ले करें हर बार ताजा काढा बनाएं तों इससे मुंह के छालों में आराम मिलता हैं।
आंखों के रोग ( Eyes disorders) - अनार के ताजे पत्तों का रस निकालकर उसे खरल में डालकर अच्छी तरह से घोंट लें जब यह पेस्ट की तरह बन जाएं तो उसको आंखों में सुबह-शाम लगाएं। इससे आंखों के रोग जैसे के आंखों की लाली, खुजली, आंखों से पानी का आना, पलकों की खुजली आदी विकार ठीक होते हैं।
खांसी ( Cough) - अनार के ताजे फुल लेकर छाया में सुखाएं अच्छी तरह से सुखने के बाद इसका महीन चूर्ण बनाएं फिर इस चुर्ण में शुद्ध शहद या गुड मीलाकर इसकी छोटी छोटी गोलियां बनाकर रखें । इसमें से एक एक गोली मुंह में रखकर चूसने से खांसी में काफी आराम मिलता हैं।

चेहरे का सौंदर्य बढ़ाने के लिए ( fairness of face) - उपर बताएं गयें तेल को प्रतीदिन चेहरे पर थोड़ा थोड़ा मलने से कुछ ही दिनों में, चेहरे की झाइयां, कील, मुंहासे, दूर होकर चेहरे का सौंदर्य बढता है।
कास-श्वास (Asthma) - सुखे हुएं अनार के बीज पचास ग्राम, लौंग, अदरक, इलायची पच्चीस पच्चीस ग्राम मीश्री 125 ग्राम इन सबको पीसकर अच्छी तरह से मीलाकर रखें। इसमें से दो तीन ग्राम को दिन में दो बार शहद के साथ लेने से कास, श्वास में आराम मिलता हैं।
अजीर्ण ( Indigestion) - अनार के ताजे पत्ते पचास ग्राम लेकर उसे छाया में सुखाएं। अच्छी तरह सुखने के बाद इसका चुर्ण बनाएं। अब इसमें दस ग्राम सोंठ और पांच ग्राम  कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर डिब्बे में सुरक्षित रखें। इसमें से पांच ग्राम चूर्ण को भोजन से आधा घंटा पहले ताजे पानी के साथ सुबह शाम सेवन करें इससे अजीर्ण का रोग ठीक होता हैं।
बार बार दस्त आना ( Diarrhea) - अगर किसी व्यक्ति को बार बार पतले दस्त आते हैं तों अनार के फल के छिलकों का चूर्ण बनाकर रखें। इसमें से दो तीन ग्राम चूर्ण को सुबह शाम पानी के साथ लेने से बार बार दस्त का आना बंद होता हैं।

आंव-रक्त युक्त शौच (Dysentery) - जब कीसी व्यक्ती को आंव-रक्त युक्त शौच आते हैं तों वह व्यक्ती जल्द ही कमजोर हो जाता हैं। पैरों में थकावट महसूस होती हैं। पल्स बढ़ने लगती हैं। साथ ही भुख भी नहीं लगती हैं। ऐसी परिस्थिति में अनार के फलों की छाल पच्चीस ग्राम, बेलगीरी पच्चीस ग्राम, धनीया के बिज बिस ग्राम इन सबको पीसकर इसका चुर्ण बनाएं। इसमें से पांच ग्राम चूर्ण को पानी के साथ सुबह शाम लेने से आंव-रक्त युक्त शौच ठीक होता हैं।
पित्त विकार ( Billiousness) - अनार के ताजे बिजों को लेकर कीसी साफ कपड़े में लपेटकर इनका रस निचोड़ लें यह रस लगभग 250 ग्राम लेकर इसमें इतनी ही मात्रा में मीश्री मीलाकर एक तार की चाशनी का पाक बनाएं। इस पाक को सुरक्षित किसी कांच की बरनी में डालकर अच्छी तरह से कार्क लगाकर रख दें। इसमें से दस ग्राम औषधि को दिन में दो बार पानी के साथ लेने से शरीर की अतिरिक्त गर्मी, पित्त विकार, पित्त के कारण होने वाली उल्टीयां,चक्कर आना आदी में यह बहुत ही गुणकारी है।
पंडुरोग- कामला ( Anemia) - अनार के ताजे बिजों का रस सुबह-शाम पीने से शरीर में खून की मात्रा बढ़ने लगती हैं और पंडुरोग दुर होता हैं।

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