ईश्वरमुल के तांत्रिक और औषधि उपयोग:-

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    दोस्तों, हमारे प्राचीन आयुर्वेद  के कुछ ही सीमित ग्रंथों में ईश्वरमुल का जीक्र हमें देखने को मिलता हैं। ईश्वर मुल की लताएं लगभग लुप्त होने के मार्ग पर हैं। यह प्राय: केवल घने जंगलों में ही देखने को मिल सकती हैं। इसकी बहुवर्षायु वाली बडी बडी लताएं प्राय: वृक्षों से लिपटी नजर आती हैं। कयी बार ये लताएं कीसी वृक्ष का सहारा ना लेकर जमीन पर ही फैलती हुई दिखाई देती हैं। इसकी लता के तने का व्यास लगभग सवा इंच तक होता हैं। इसके पत्ते अखंड या अविभाजित, लंबगोल, लंबे, अग्रभाग आधे से पौन इंच तक लंबा और पिछला भाग दो से चार से पांच इंच तक लंबा और तीन इंच तक चौडा होता हैं।इसके फुल गहरे रंग के। और फलीयां दो इंच तक लंबी होती हैं।इसकी छाल का रंग धुसर पिलापन लिए हुए होता हैं। इसकी जड़ों का रंग गहरा पिला या लाल रंग का होता हैं। इसकी जड में से कपुर की तरह सुगंध आता हैं। सर्वाधिक में भी यह कपुर की तरह ही होती हैं। इसकी जड़ों के उपर कंद पाया जाता हैं।

विभिन्न नाम

अंग्रेजी नाम - Indian birthroot.

बोटेनिकल नाम - Aristolochia indica.

संस्कृत नाम - ईश्वरमुल, ईश्वरी,नाकुली।

हिंदी नाम - ईशरमुली।

मराठी नाम - मुंगुसवेल, सापसन।

गुणधर्म - आयुर्वेदानुसार ईश्वरमुल तीक्त, विषहर, ज्वर का नाश करने वाली, कफ निस्सारक, वातहर, ग्राही, गर्भिशय उत्तेजक, जोड़ों के दर्द में लाभकारी, वातनाडीयों को उत्तेजित करने वाली, तथा पसीना लाने वाली,कुष्ठरोग का नाश करने वाली, त्वचा रोगों में लाभदायक, शक्तीवर्धक,  उत्तेजक, ज्यादा मात्रा में लेने से वमन कारक,  तथा पौष्टिक मानी जाती हैं। इसका ज्यादातर प्रयोग दुसरे औषधि के साथ किया जाता हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के वैद्यराज इसको सोंठ, कालीमिर्च, और पीपल के चूर्ण में मिलाकर पान के साथ बिडा बनाकर देते हैं। कहा जाता हैं की इस तरह ईसका उपयोग करने से इसके गुणों में वृद्धि होती हैं।

मात्रा - इसके पंचांग का चूर्ण लगभग पांच से दस रत्ती पान में उपर लिखें विधिनुसार। जड का चूर्ण चार से आठ रत्ती। पत्र स्वरस दो से आठ मासे तक।

 औषधीय उपयोग

पाचनशक्ति कमजोर होना - अगर किसी  पाचन शक्ति व्यक्ति की पाचन शक्ति कमजोर हो गई हैं। आमाशय में दुर्बलता आ गई है तो ईश्वरमुल के पंचांग का चूर्ण दो रत्ती कालीमिर्च एक दो ग्राम के साथ खाने से आमाशय की कमजोरी दूर होकर पाचनशक्ति बढ़ती है। साथ ही बार बार आने वाले आंवयुक्त दस्त भी ठीक होते हैं।

पेट में सदा वायु भरा रहना - जीन लोगों के पेट में सदा वायु भरा रहता हैं । सुखी डकारें आती हैं। पेट के वायु  के कारण गरगर जैसी आवाज आती हैं तो इसे ठिक करने के लिए यह औषधि बहुत ही लाभदायक है। इसके लिए ईश्वरमुल का चूर्ण लगभग दो रत्ती सोंठ के साथ लेने से पेट का वायु दुर होता हैं।

ज्वर - सभी प्रकार के ज्वरों में ईश्वरमुल बहुत ही फायदेमंद साबित होती हैं। इसकी जड का चूर्ण लगभग तीन रत्ती भर या इसकी जड का फांट बनाकर पीने से ज्वर ठीक होता हैं।

बदन दर्द - अगर किसी व्यक्ति का बदन टुट रहा हैं।हाथ पैरों में दर्द हो रहा हैं। तथा हाथ पैरों में थकावट महसूस हो रही हैं तो ईश्वरमुल का दो तीन रत्ती चुर्ण छोटी पीपल के लेने से पसीना आकर कुछ ही समय में सारे बदन का दर्द ठीक होता हैं।

आर्थराइटिस - आर्थराइटिस के दर्द और सुजन ठीक करने के लिए ईश्वरमुल काफी लाभदायक मानी जाती हैं। इसके जड का चूर्ण लगभग तीन रत्ती, त्रीकटु के साथ लेने से आर्थराइटिस के दर्द और सुजन में आराम मिलता हैं।

जोड़ों का दर्द और सुजन - जोड़ों के दर्द और सुजन को ठीक करने के लिए ईश्वरमुल को पानी के साथ घिसकर इसका पेस्ट बनाएं इस पेस्ट को जोड़ों पर नियमित रूप से कुछ दिन तक लगाएं और उपर से एरंड का पत्ता गर्म करके बांध दें इस प्रकार यह प्रयोग नियमित रूप से कुछ दिनों तक करते रहे इससे कुछ ही दिनों में जोड़ों का दर्द और सुजन ठीक होती हैं।

कुष्ठरोग - अगर किसी व्यक्ति को शरीर पर सफेद दाग बन रहें हैं या कुष्ठरोग के कारण त्वचा सफेद हो गई हैं तों ईश्वरमुल की जड का गाढा काढ़ा बनाकर इसे चाय की पत्ती के साथ मिलाकर सफेद दागों पर लगाएं। इससे कुछ ही दिनों में सफेद दाग दुर होते हैं।

आपके प्रश्न हमारे उत्तर

क्या ईश्वरमुल सांप के विष को दूर करती हैं?

उत्तर - जी हां, हमारे प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथों में इसको सांप के विष को दूर करने में भी लाभदायक बताया गया है। सांप के विष को दूर करने के लिए इसके ताजे पत्तों का रस या इसकी जड का चूर्ण कालीमिर्च के साथ देने से सांप का विष उतर जाता हैं।

इश्वरमुल के तांत्रिक उपयोग क्या हैं? 

उत्तर - हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों द्वारा लिखित कयी ग्रंथों में इसके बहुत सारे तांत्रिक उपाय भी देखने को मिल जाते हैं। उसमें से कुछ प्रयोग इस प्रकार है। सोमवार के दिन जब अश्विनी नक्षत्र हो तो उससे एक दिन पहले तांबे के पात्र में थोड़ा सा पानी और एक धुप लेकर ईश्वरमुल की बेल के पास जाकर उसे निमंत्रण दें। और दोनों हाथ जोड़कर अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें और घर वापस लौट आए। फिर दुसरे दिन यानी सोमवार को जब आश्विनी नक्षत्र हो तब सुबह सुर्योदय से पुर्व पवित्र होकर इस बेल के पास जाएं। और पुर्व दिशा की ओर मुख करके इसकी थोडी सी जड को निकालकर अपने साथ घर लेकर आएं। एक बात का ध्यान रखें कि आतें या जाते समय आप को कोई टोके नहीं। इस तरह से इसकी जड को अपने घर लाकर पवित्र स्थान पर कीसी प्लेट में रख दें। फीर इस जड को एक बार गुग्गल की धुनी देकर इसे कीसी ताबीज में भरकर अपने दाहीनी भुजा या फिर कमर में बांध दें तो तंत्र शास्त्र के अनुसार ऐसे व्यक्ति के पास सांप कभी भी नहीं आता हैं।

ईश्वरमुल की पुजा करने से भगवान शिवजी की कृपा प्राप्त होती हैं?

उत्तर - जी हां, हमारे प्राचीन ग्रंथों के अनुसार उपरोक्त विधि से सिद्ध की हुई जड को अगर कोई व्यक्ति अपने घर के पुजा स्थान में रखकर प्रतीदिन इसकी पुजा करता हैं तों उस व्यक्ति पर भगवान शिवजी की कृपा सदैव बनी रहती हैं।

ईश्वरमुल को अपने घर में रखने से घर के सांप भाग जाते हैं?

उत्तर - हमारे प्राचीन तांत्रिक ग्रंथो के अनुसार उपरोक्त विधि से सिद्ध की हुई जड को अगर आप अपने घर के मुख्य दरवाजे पर रखते हैं तो  भगवान शिवजी की कृपा से आपके घर में जितने भी सांप हैं वह सभी भाग जाते हैं। और दोबारा घर में प्रवेश नहीं करते हैं।