Mauni Amavasya Yoga: 30 साल के बाद बन रहा है अद्भुत खप्पर योग और इसमें हैं शनिचरी मौनी अमावस्या। यह उपाय करें

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Mauni Amavasya Yoga: मौनी अमावस्या पर शनि के कुंभ राशि एवं सूर्य शुक्र की युति के साथ का खप्पर योग।

Mauni Amavasya Yoga: दोस्तों ज्योतिष के अनुसार माघ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या प्रायः मौनी अमावस्या के नाम से जानी जाती है। इस बार अमावस्या के दिन शनिवार होने से यह शनिश्चरी अमावस्या कहलाएगी। पंचांगीय गणना से 30 वर्ष बाद मौनी शनिश्चरी अमावस्या पर खप्पर योग बन रहा है। यह योग धार्मिक कार्य तथा शनि की अनुकूलता के लिए किए जाने वाले उपायों के लिए विशेष माना गया है। इस दिन मोक्षदायिनी शिप्रा के त्रिवेणी संगम पर पर्व स्नान करने का बडा महत्व हैं।

 इस मास मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 21 जनवरी को शनिवार के दिन पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र उपरांत उत्तराषाढा नक्षत्र, हर्षण योग तथा चतुष्पद करण की साक्षी में एवं धनु उपरांत मकर राशि के चंद्रमा की उपस्थिति में आ रही है। अमावस्या विशेष इसलिए भी मानी जाती है कि इस अमावस्या के आसपास में उत्तरायण का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। धार्मिक कार्य तथा पुण्य की वृद्धि एवं तीर्थाटन के लिए यह दिन विशेष रूप से पूजनीय तथा मान्य है। शनिश्चरी अमावस्या पर त्रिवेणी स्थित प्राचीन नवग्रह शनि मंदिर में दर्शन पूजन व त्रिवेणी संगम में स्नान करने से शनिदेव की कृपा तथा पुण्य की प्राप्ति होती है।

शनि के कुंभ राशि एवं सूर्य शुक्र की युति के साथ का खप्पर योग

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में नवग्रहों में ऊर्जावान तथा सुंदर एवं आध्यात्म के कारक ग्रह शनि ढाई वर्ष में राशि परिवर्तन करते हैं। इन्हीं ढाई वर्ष के दौरान कभी वक्र अवस्था और कभी मार्गी अवस्था चलती रहती है। गणना के चक्र के बाद शनि ग्रह एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। इस बार मौनी अमावस्या पर शनि का राशि परिवर्तन चार दिन पहले ही हो जाएगा। कुंभ राशि के शनि के साक्षी में इस बार की मौनी अमावस्या का महापर्व योग बन रहा है। विशेष यह भी है कि मकर राशि में सूर्य, शुक्र की युति तथा मूल त्रिकोण, त्रिकोणों के अधिपति की स्थिति खप्पर योग का निर्माण कर रही है। हालांकि इसमें मतांतर है किंतु यह स्पष्ट है कि जब इस प्रकार की युति बनती है तो अलग-अलग प्रकार के योग संयोग बनते हैं। शनि का कुंभ राशिफल मूल प्रवेश की अवस्था 30 वर्ष बाद बन रही है इस दृष्टि से यह 30 वर्ष बाद मौनी अमावस्या का महापर्व रहेगा। इस दौरान दान, तीर्थ यात्रा, भागवत श्रवण आदि का विशेष महत्व और पुण्य प्राप्त होता है।

सूर्य, चंद्र, मंगल शुक्र की केंद्र युति से बने कई प्रकार के योग

ग्रह गोचर के परिभ्रमण काल के दौरान मकर राशि स्थित सूर्य के साथ शुक्र का होना तथा चंद्र का दोपहर के बाद मकर राशि में होना एवं मंगल का वृषभ राशि में होना जो केंद्र त्रिकोण का योग बना रहा है साथ ही शुक्र चंद्र मूल केंद्र योग बना रहे हैं यह अपने आप में विशेष माने जाते हैं उसका कारण यह भी है की इन ग्रहों से संबंधित क्षेत्रों पर अलग-अलग प्रकार का प्रभाव पड़ेगा।

उत्तराषाढ़ा नक्षत्र की भी साक्षी

सूर्य,चंद्र, शुक्र की मकर राशि में युती तथा रात्रि में उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का होना अमावस्या तिथि को तंत्र की गणना से विशेष बल प्रदान करता है। उत्तरा नक्षत्र शनि की ही राशि का नक्षत्र माना जाता है। इस दृष्टि से भी यह नक्षत्र विशेष सिद्धि के लिए बलवान बताया गया है। और खप्पर योग जैसा योग बनता हो तो वह विशेष बलशाली हो जाता है।

पुण्य की वृद्धि व शनि की अनुकूलता के लिए तीर्थ तथा मंदिरों पर करें दान

तांबे के कलश में काले तिल, सोने का दाना रखकर वैदिक ब्राह्मण को दान करने से रोग, दोष, बाधा की निवृत्ति होती है। साथ ही सीधा, खड़ा धान दान करने से भी ग्रहों की अनुकूलता होती है। कार्य में प्रगति का रास्ता खुलता है। गायों को घास खिलाने से भी कुल वृद्धि का रास्ता बनता है। शनि की अनुकूलता के लिए भिक्षुकों को भोजन, कंबल का दान, वस्त्र का दान, चिकित्सा की व्यवस्था या औषधि का दान करना चाहिए।

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