एलो वेरा के यह फायदें आपको कोई नहीं बतायेगा, लिवर रोग, किडनी के रोग, पेट के रोग, सौंदर्य, गठिया या दर्द 

कंटकारी के फायदे और नुकसान/ kateri ke fayde aur nuksaan  

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  दोस्तों हमारे वनस्पति शास्त्र के अनुसार कटेरी कंटकारी ( Solanacea) कुल की सर्वप्रथम औषधि वनस्पति हैं। इस कुल में अन्य भी कयी प्रकार की औषधी वनस्पतीयां भी आती हैं जैसे मकोय, आलु, और बैंगन आदि। कटेरी हमारे देश के अतीरिक्त, श्रीलंका, पाकिस्तान,दक्षीण पुर्व एशीया, एवं आस्ट्रेलीया में भी पायी जाती हैं।
कटेरी के छोटे छोटे कांटेदार क्षुप होते हैं। जो छत्तें की तरह जमीन पर फैलते हैं।यह हमारे देश के सभी प्रांतों में सड़कों के किनारे,, खुले मैदानों में,और कुड कचरे के आसपास अपने आप उगते हैं। इसकी शाखाएं आडी-तेढी अपने चारो ओर से पांच फ़ीट तक के घेरे में फैलती हैं। 
इसके समुचा क्षुप बारीक बारीक कांटों से युक्त होता हैं। कांटों का रंग धुसर पिला, चमकदार और यह आधे इंच तक लंबे होते हैं।
इसकी पत्तियां चार पांच इंच तक लंबी होती हैं और इन पत्तीयों की शिक्षाओं पर भी कांटे होते हैं।इसकी पत्तियां बनगोभी या उंटकटारा की पत्तीयों की तरह टेढी मेढी होती हैं। इसके फुल एक साथ ही छोटे-छोटे गुच्छों में लगते हैं। इसके गुच्छ प्राय: पत्तीयों के डंठल की दुसरी ओर निकलते हैं। इसके फुलों का रंग जामनी होता हैं और फुलों की लंबाई लगभग पौन इंच तक होती हैं। इसके फल रसदार लगभग पौन इंच व्यास के गोल और पीला रंग लेते हुए होते हैं। फलों पर हरे रंग की धारीयां होती हैं। इसके फलों में काफी मात्रा में बिज होते हैं जो बिल्कुल बैंगन के बिजों की तरह दिखते हैं।
आयुर्वेद ग्रंथानुसार कटेरी की मुख्यत: दो प्रजातीयां पायी जाती हैं एक को छोटी कटेरी और दुसरी को बडी कटेरी या बृहती कहा जाता हैं। उपर जो वर्णन किया गया है वह  छोटी कटेरी का है। छोटी कटेरी में एक जामनी रंग की और दुसरी सफेद रंग की कटेरी पायी जाती हैं।  आयुर्वेद ग्रंथानुसार बड़ी कटेरी में और भी कई जातीयां देखने को मीलती हैं। बडी कटेरी और छोटी कटेरी में कुछ थोड़ा-सा अंतर पाया जाता हैं। बडी कटेरी के क्षुप पांच छः फीट तक उंचे होते हैं, इस पर छोटी कटेरी की अपेक्षा कांटे कम होते हैं जो छोटी कटेरी के कांटों की तरह लंबे और नुकीले नहीं होते हैं। बडी कटेरी की पत्तीयां भी छोटी कटेरी की तरह ज्यादा टेढी नहीं होती हैं।बडी कटेरी बारहों महीने उपलब्ध होती हैं। जबकी छोटी कटेरी के क्षुप वर्षा ऋतु में नष्ट होते हैं।
कुछ साल पहले हमारे देश के आसाम, और अन्य भागों में उगने वाली बडी कटेरी की एक प्रजाति 'सोलानुम खासीयानुम' बहुत ही प्रसीद्ध हो गई थी रिसर्चर्स के अनुसार इस कटेरी की प्रजाति में Solesodrin नामक एक शक्तीशाली तत्व पाया जाता हैं जीसका उपयोग Sexual harmons बनाने में काफी मददगार साबित हुआ है।  

कटेरी के बारे में ध्यान में रखने वाली यह बात है की संस्कृत भाषा में छोटी और बड़ी कटेरी दोनों को बृहती कहा जाता हैं। दोनों में औषधीय गुण भी समान पाएं जाते हैं। फीर भी कुछ आयुर्वेद के ग्रामीण क्षेत्रों में लोकल डाक्टर छोटी कटेरी का ही उपयोग ज्यादा मात्रा में करते हैं। परंतु छोटी कटेरी तो वर्षा ऋतु में नहीं मिल पाती हैं तों ऐसी परिस्थिति में इसकी जगहपर बडी कटेरी का उपयोग आप कर सकते हैं। औषधि रूप में कटेरी का पंचांग उपयोग में लाया जाता हैं। 
कटेरी की मात्रा
चुर्ण के रूप में एक से दो ग्राम तक इसका उपयोग करें। काढा बनाने के लिए बिस से पचास ग्राम तक उपयोग कर सकते हैं। ईसके ताजे पंचांग को छाया में सुखाकर ढक्कनदार डिब्बे में सुरक्षित रखने से यह एक वर्ष तक विर्यवान बना रहता हैं।
गुणधर्म
आयुर्वेदानुसार कटेरी लघु, कटु, तिक्त,, उष्णविर्य, रूक्ष,तिक्ष्ण,कफ निस्सारक, कृमी नाशक,शोथहर, दीपक, पाचक, तथा किंचित रेचक मानी जाती हैं। यह खास, श्वास, जुकाम,,पसली की पिडा, और गले के रोगों में लाभदायक होती हैं। यह ज्वरनाशक, पेशीयों का दर्द, रक्तशोधक, और पेशाब के रोगों में लाभदायक है। आधुनिक हुई रिसर्च अनुसार यह कयी प्रकार के असाध्य रोगों में असरकारक मानी गई हैं।
प्रचलित योग- कण्टकार्यावलेह, व्याघ्री तेल, व्याघ्री हरीतकी दशमुल काढ़ा, कण्टकारी घृत आदि।
विभिन्न नाम - बोटेनिकल नाम- छोटी कटेरी Solanum surratence, बडी कटेरी - ( Solanum indicum) संस्कृत - कण्टकारी, बृहती, हिंदी नाम - कटेरी, भटकटैया, मराठी नाम - रिंगनी, भुईरिंगनी।
  कटेरी के औषधि प्रयोग
बुखार, ज्वर ( Fever) - कंटकारी का पंचांग दस ग्राम, सोंठ पांच ग्राम इन दोनों को दो सौ ग्राम पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं फिर इसमें थोडी सी मीश्री मीलाकर गर्म गर्म ही पी लें।यह एक बार के लिए हैं। इसी प्रकार दिन में तीन चार बार काढ़ा बनाकर पीने से पसीना आकर बुखार उतर जाता हैं। यह कफज बुखार में बहुत ही गुणकारी है।
 पेशीयों का दर्द - ( Muscular pain) - पेशीयों के दर्द में यह जबरदस्त फायदेमंद होती हैं अगर किसी कारणवश सारे बदन में कुचलने जैसा दर्द होता हैं तो कटेरी के पंचांग का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से कुछ ही समय में पेशीयों का दर्द ठीक होता हैं।
दमा,श्वास रोग - ( Ashthamatic cough) - अगर किसी व्यक्ति को दमे या श्वास रोग के कारण श्वास लेने में दिक्कत होती हैं, श्वास फुलने लगता हैं या फिर छाती में बहुत ज्यादा मात्रा में कफ जमा होने के कारण दम घुटने जैसा प्रतीत होता हैं तो दस ग्राम कटेरी, पांच ग्राम अजवाइन, और दो तीन लोंग इन सभी को ढाई सौ ग्राम पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं जब केवल पच्चीस ग्राम पानी शेष रहें तब उतारकर छान कर गर्म गर्म ही सुबह-शाम सेवन करें इससे छाती में जमा कफ पिघलकर निकल जाता हैं और छाती की घरघराहट ठीक होकर श्वास लेने में आसानी होती हैं। यह प्रयोग दमे के रोगियों के लिए अमृत समान लाभकारी है। छोटे बच्चों के कफविकार में भी इसका सेवन लाभकारी होता हैं। इससे बच्चों की छाती में जमा कफ निकल जाता हैं। और घरघराहट भी ठीक होती हैं । बच्चों को उम्र के हिसाब से मात्रा देनी चाहीए।
खांसी सहीत बुखार ( Fever with coughing) - कटेरी की जड़ दस ग्राम और गीलोए ताजी दस ग्राम इन दोनों को कुचलकर पांच सौ ग्राम पानी में उबालें जब केवल सौ ग्राम पानी शेष रहें तब ईसको उतारकर छान लें। अब इसमें दस ग्राम शहद तीन ग्राम छोटी पीपल का चूर्ण और दो ग्राम सेंधानमक मिलाकर इसे दिन में दो बार सेवन करें। यह दो खुराक औषधि हैं। इसी प्रकार इस औषधि काढे को लगातार कुछ दिनों तक सेवन करने से खांसी तथा सामान्य श्वास के साथ नया पुराना बुखार, ठीक होता हैं। एवं भुख भी खुलकर लगती हैं। साथ ही  जूकाम, सीरदर्द, और श्वासनली की सुजन( respiratory tract inflammation) भी ठीक होती हैं।
कंटकारी अवलेह बनाने की विधि - कटेरी का पांच सौ ग्राम पंचांग लेकर उसे मोटा मोटा कुट ले। फिर इसको पांच सौ ग्राम पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं जब केवल सवासौ ग्राम पानी शेष रहें तब उतारकर छान लें और इसे तीन चार घंटे के लिए ऐसा ही छोड दें। फीर उपर का पानी निथार कर  इसे पुनः पकाएं। अब इसमें सवासौ ग्राम शक्कर और दस ग्राम छोटी पीपल का चूर्ण डाल दें। जब यह शहद के जैसी गाढी चाशनी बन जाएं तो इसे उतारकर ठंडा होने दें। तो आपके लिए कंटकारी अवलेह तैयार है । इसे ठंडा होने दें और फिर कांच की बरनी में भरकर कार्क लगाकर सुरक्षित रखें। इस औषधि में से दस ग्राम औषधि को दिन में तीन बार ऐसे ही सेवन करें अथवा इसे थोडे से गर्म पानी के साथ लें। इससे सभी प्रकार के श्वास, कास, दमा, कफ का जमना, आदि सभी श्वास संबंधित रोग दूर होते हैं। और भुख भी बढ़ती है। यह बच्चों के कफविकार में भी लाभ करता हैं।
पथरी - ( Kidney stone) -  पथरी के रोगियों के लिए भी कटेरी बहुत ही लाभदायक मानी जाती हैं। इसके पंचांग का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से कुछ ही दिनों में पथरी टुटकर पेशाब के साथ निकल जाती हैं।
जोड़ों का दर्द और सुजन ( Joint pain and inflammation) - आधुनिक हुई रिसर्च अनुसार कटेरी में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एनाल्जेसिक तत्व प्रचुर मात्रा में पाएं जाते हैं जिसके चलते यह जोड़ों के दर्द और सुजन को ठीक करने में बहुत ही गुणकारी होती हैं। इसके लिए कटेरी का पंचांग दस ग्राम, शालपर्णी की जड पांच ग्राम और सोंठ दो ग्राम को ढाई सौ ग्राम पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं जब केवल पचास ग्राम पानी शेष रहें तब उतारकर छान कर पी लें। इसी प्रकार इस प्रयोग को दिन में दो तीन बार अवश्य करें तों इससे कुछ ही दिनों में जोड़ों का दर्द और सुजन ठीक होती हैं।

आपके प्रश्न हमारे उत्तर

कटेरी का पौधा क्या काम करता हैं?
उत्तर- कटेरी का पौधा आयुर्वेदिक और कयी तांत्रिक कार्यों में काम करता हैं। आयुर्वेदानुसार कटेरी खांसी, काली खांसी, आधाशिशी का दर्द, जुकाम, बुखार, भुख की कमी, पथरी , और सुजन में काफी लाभदायक माना जाता हैं। 
भटकटैया के फुल ?
उत्तर- भटकटैया के फुल बिल्कुल बैंगन की फुल की तरह ही दिखाई देते हैं, और इनका रंग भी बैंगन के फूलों के जैसा जामुनी होता हैं।
सफेद कटेरी का तांत्रिक प्रयोग?
सफ़ेद कटेरी के जड को शुभ नक्षत्र में विधिपूर्वक निमंत्रण दें थोडी देर बाद जाकर अपने घर लेकर आएं। आते या जाते समय किसी से बात ना करें। जड को अपने घर लाने के बाद इसे शुद्ध प्लेट में शुद्ध जगह पर रखकर इसे एक बार गुगल की धुनी दें तो यह जड सिद्ध हो जायेगी। फीर इस सिद्ध की हुई जड को ताबिज में भरकर स्त्री और पुरुष के कमर में बांधने से संतान की प्राप्ति होती हैं। इसका वराही कंद के साथ प्रयोग करने से किसी की भी नजर बांधी जा सकती हैं।
कंटकारी अवलेह बनाने की विधि?
उत्तर- उपर हमने कंटकारी अवलेह बनाने की विधि बताई है उसे देखें।
भटकटैया का वैज्ञानिक नाम?
उत्तर- भटकटैया में दो प्रजातियां पाई जाती हैं एक छोटी और दुसरी बड़ी होती हैं। छोटी भटकटैया का वैज्ञानिक नाम  Solanum surratence और बडी भटकटैया का वैज्ञानिक नाम है Solanum indicum.
कटेरी का उपयोग कोरोना वायरस में लाभकारी होता हैं?
उत्तर- कोरोना में दिखाई देने वाले लक्षण जैसे के सर्दि, खांसी, जुकाम, बुखार,फेफडों की कमजोरी, श्वास लेने में परेशानी आदि लक्षणों को ठीक करने के लिएं कंटकारी का उपयोग काफी लाभदायक हो सकता हैं।