कवचबिज के फायदे और नुकसान

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दोस्तों, वाजीकरन और पुरूषों की कमजोरी दूर करने के लिए आयुर्वेदा में जीतनी भी पेटंट दवाएं मौजूद हैं उन सभी दवाओं में कवचबिज का उपयोग सौ प्रतिशत होता ही है। इसके बिना वाजीकरन की सभी औषधीयां अधुरी मानी जाएगी। हमारे आयुर्वेदा में कवचबिज को बड ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हैं। हमारे सभी प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथों में इस औषधि बेल का वर्णन विस्तृत रूप से मीलता है। इसकी लताएं प्राय: हमारे देश के सभी प्रांतों में आसानी से मिल जाती हैं। इसको कुछ लोग अपने घरों में भी लगाते हैं और यह जंगलों में भी स्वयंजात से उत्पन्न होती हैं। इसकी शाखाएं कोमल, और छोटे-छोटे रोम से युक्त होती हैं। अगर यह रोम शरीर पर कहीं लग जाते हैं तो भयंकर खुजली, और सुजन उत्पन्न हो जाती हैं। इसकी फलीयों को पानी में उबालकर सब्जी बनाई जाती हैं। यह सब्जी अत्यंत पौष्टिक होती हैं।
इसकी लता एक वर्षायु ,चक्रारोहि होती हैं। यह पर्याय: वर्षा ऋतु में उगने लगती हैं तथा शरद ऋतु में इसमें फुल और फलीया आनी प्रारंभ होती हैं। इसकी पत्तियां ढाई इंच से सात इंच तक लंबी तथा सेम की पत्तियों जैसी दिखती हैं। कींतु कवच की पत्तियों के निचले भाग पर रोम होते हैं। इसके पत्तों के पास से ही पुष्पदंड निकलते हैं जो आधे से एक फीट तक लंबे होते हैं। एक पुष्पदंड में लगभग दस से बीस पुष्प लगते हैं जीनका रंग बैंगनी होता हैं। पुष्प झडने के बाद इसपर फलीयां आनी प्रारंभ होती हैं। इसकी फलीयां लगभग दो से तीन इंच तक लंबी आधा इंच तक चौडी होती हैं। इन फलीयों पर छोटे छोटे घने विषैले रोम होते हैं। इसकी प्रत्येक फली में लगभग चार से छह बिज होते हैं। जो उपर से कालापन लिए हुए धुसर रंग के और भीतर से यह सफेद रंग के होते हैं।
विभिन्न नाम  - बोटेनिकल नाम- Mucuna prurita, हिंदी नाम - केवांच, कौंच, मराठी नाम - कुहीली, कवचबिज, संस्कृत नाम - कपिकच्छु आदी।
मात्रा - बिजों का चूर्ण दो से पांच ग्राम, जड दो से तीन ग्राम काढा बनाने के लिए। इसके बिजों में डोपामिन नामक क्रियाशील तत्व पाया जाता हैं जिससे  ब्रेन में सही रूप से रक्तसंचरण होता हैं और इससे अंगो का फड़कना,लकवा जैसे भयानक रोगों में लाभ मिलता हैं।
  
गुणधर्म - आयुर्वेदानुसार कवचबिज उष्णविर्य, गुरु, स्निग्ध, मधुर, तिक्त होता हैं। इसके अलावा यह कृमीनाशक भी माना जाता हैं।

प्रचलित योग - वानरी गुटिका, केवांच पाक, मुसली पाक, आदि।

रोगानुसार उपयोग

केवांच पाक बनाने की विधि - ढाई सौ ग्राम कवचबिज पानी में उबालकर इसके छिलकों को उतार डाले। अब इन बिजों को बारीक पीसकर तीन लीटर दूध के साथ कढाई में डालकर औटाएं। इसको बराबर चलाते रहें। जब दुध गाढा होकर खोया जैसा बन जाएं तो इसमें पचास ग्राम देशी घी डालकर हल्का हल्का भुन ले। अब इसमें साढे तीन सौ ग्राम पीसी हुई शक्कर और इलायची, सोंठ, पीपल, दालचीनी, यह दस दस ग्राम अच्छी तरह से मीलाकर बंद साफ डिब्बे में सुरक्षित रखें। तो केवांच पाक तैयार है। इसमें से दस दस ग्राम इस पाक को सुबह-शाम दुध के सेवन करने से शरीर में आई हर प्रकार की कमजोरी दूर होती हैं। इससे शरीर में नया विर्य बनने लगता हैं। इसको ठंड के मौसम में सेवन करना अमृत समान लाभकारी है।
कवचबिज का हलुआ - दस ग्राम कवचबिज लेकर उसका छिलका उतार डाले और इनको बारीक पीसकर चूर्ण बनाएं यह चुर्ण लेकर इसमें दस ग्राम गेहूं का आटा मिलाकर इसे आधा लीटर दूध में पकाएं। जब यह खीर जैसी बन जाएं तो इसमें स्वाद के लिए शक्कर और थोडा सा देशी घी डालकर प्रतिदिन सुबह खाएं । इससे शरीर की हर प्रकार की कमजोरी दूर होती हैं। पुरूषों के लिए बहुत ही गुणकारी नुस्खा है।
आर्थराइटिस  ( Arthritis) - जो लोग आर्थराइटिस से पिडीत है उनके लिए कवचबिज बहुत ही फायदेमंद साबित हो सकता हैं। कवचबिज तीन ग्राम, सोंठ दो ग्राम, दोनों को पानी के साथ काढा बनाकर सुबह-शाम पीने से आर्थराइटिस में काफी आराम मिलता हैं।
पेशाब के रोग - जो लोग पेशाब संबंधित समस्याओं से पिडीत है पेशाब में दर्द होना, पेशाब खुलकर ना आना पेशाब गर्म आना आदि समस्या दूर करने के लिए केवांच की जड का काढा बनाकर सुबह-शाम पीने से पेशाब संबंधित सभी रोग दूर होते हैं और पेशाब खुलकर आने लगता हैं।
पुराना बुखार, प्रलाप ( Hallucinations due to fever ) - अगर किसी व्यक्ति को बुखार हो गया है और वह व्यक्ती कुछ भी बड़बड़ाने लगता हैं तों ऐसी परिस्थिति में केवांच की जड का काढा बनाकर देने से उस व्यक्ति को पेशाब साफ होकर बुखार उतर जाता हैं और बुखार के कारण होने वाली बडबडाहट भी ठीक होती हैं।
हत्तीपांव ( Filariasis) - अगर किसी व्यक्ति को हत्तीपांव की शिकायत हो तो केवांच की जड को पानी में पिसकर पेस्ट बनाएं और इसे हत्तीपांव पर बांधने से कुछ ही दिनों में पांव की सुजन पुरी तरह से ठीक होती हैं और पांव नॉर्मल हो जाता हैं।
कठीन व्रण ( Hard wounds) - अगर कोई व्रण कीसी भी दवा से ठीक नहीं हो रहा हैं तो व्रण को पहले साफ करके उस पर महीन पिसा हुआ कवचबिज का पावडर डालें। इससे कुछ ही दिनों में पुराना से पुराना व्रण भी ठीक होता हैं।
जोड़ों का दर्द और सुजन ( joint pain and inflammation) - जोड़ों के दर्द और सुजन को ठीक करने के लिए कवचबिज बहुत ही लाभदायक होते हैं। इसके लिए कवचबिज का चूर्ण तीन ग्राम, एरंडमुल तीन ग्राम दोनों को पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से कुछ ही दिनों में जोड़ों का दर्द और सुजन ठीक होती हैं।
मुंह का लकवा ( Facial paralysis) - अगर किसी व्यक्ति को मुंह का लकवा हो गया है, मुंह टेढा हो गया है। बोलने में दिक्कत हो रही हैं तो ऐसी परिस्थिति में कवचबिज का चूर्ण तीन ग्राम और उडद तीन ग्राम इन दोनों को पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर दिन में तीन चार बार पिने से मुंह का लकवा, टेढापन दुर होकर मुंह पुर्ववत होता हैं।
सारे शरीर का लकवा ( Paralysis of body) - अगर किसी व्यक्ति को शरीर के कीसी भी भाग में लकवा हो गया हो, तो कवचबिज का चूर्ण दो सौ ग्राम उडद का दलिया दो सौ ग्राम, कालीमिर्च का चूर्ण दस ग्राम मीलाकर इसको पानी में गुंथकर इसके दस दस ग्राम के बड़े बनाएं फिर इसको शुद्ध घी में पर्याय करके रख दें। इसमें से एक दो बड़ों को सुबह-शाम नियमित रूप से कुछ सप्ताह तक सेवन करने से शरीर के सभी अंगों का फड़कना, लकवा, दुर होता हैं।।

बवासीर - बवासीर के मस्सों को ठीक करने के लिए केवांच की जड और इमली की अंतरछाल समान मात्रा में लेकर पानी में अच्छी तरह मिलाकर पेस्ट बनाएं। इस पेस्ट को सुबह-शाम बवासीर के मस्सों पर लगाने से कुछ ही दिनों में बवासीर के मस्से सूख जाते हैं।
आपके प्रश्न हमारे उत्तर
कौंच बिज के पावडर के फायदे ?
उत्तर - कौंच बिज का पावडर खाने से शरीर की कमजोरी दूर होकर शरीर में नया विर्य बनने लगता हैं इससे शरीर पुष्ट होता हैं और नपुंसकता दूर होती हैं। यह औषधि पुरूषों के लिए बहुत ही लाभदायक होती हैं।
गोखरू और कवच के फायदे?
उत्तर - गोखरू पच्चीस ग्राम और कवच के बिज पच्चीस ग्राम लेकर इसका चुर्ण बनाएं फिर ईसमे इतनी मात्रा में यानी पचास ग्राम पिसी हुई मिश्री का चूर्ण डालकर ईसको डिब्बे में सुरक्षित रखें। इसमें से पांच पांच ग्राम चूर्ण को सुबह-शाम दुध के साथ लेने से हर प्रकार की कमजोरी दूर होकर पुरूषत्व बढ़ता है।
कौंच की जड के फायदे?
उत्तर - कौंच की जड का पेस्ट बनाकर बवासीर के मस्सों पर लगाने से कुछ ही दिनों में बवासीर के मस्से सूख जाते हैं। इसके और भी फायदे हैं जिसका वर्णन हमने इस पोस्ट में कीया हैं।
कौंच बिज का पावडर केसे बनाएं?
सबसे पहले कौंच के बिज लेकर उसके उपरी छिलकों को निकालकर फेंक दें। अब इन सफेद रंग के गीरी को खरल में डालकर या मीक्श्चर में डालकर महीन चूर्ण बनाएं। फीर इस चुर्ण में बराबर मात्रा में मीश्री मीलाकर बंद डिब्बे में सुरक्षित रखें इसमें से आप अपनी आवश्यकता नुसार दुध के साथ इसका सेवन करें।
कौंच के बिज केसे होते हैं?
उत्तर - कौंच के बिज के छिलके का उपरी भाग काले या धुसर रंग का होता हैं और भीतर से यह सफेद रंग के होते हैं।
कौंच के बिजों की तासीर केसी होती हैं? 
उत्तर - कौच के बिज की तासीर उष्ण होती हैं। यह उष्णविर्य होते हैं।
कौंच के बिज का सेवन केसे करें?
उत्तर - कौंच के बिज के उपरी छिलकों को उतार कर भीतर के सफेद बिजों का चूर्ण बनाकर इसमें बराबर मात्रा में मीश्री मीलाकर रखें। और इस चुर्ण का सेवन दुध के साथ करें।